गजलः चाँद से प्यार
¤ आवाज शर्मा¤
हम ख्वाबोँ की गोद मे चाहत को सुलाते है
रोते नहीँ हम आँशु ओँ से यादेँ धुलाते है
फिसलती है वही मिट्टी बार बार हम पैर रखते जहाँ
किस को कहूँ अपना ही किस्मत झुला झुलाते हे
वह कौन सी रात हे फिर हम को ही पता नहीँ
यादोँ मे सिर्फ वह आई और हम खुद को भुलाते हे
तुम से क्या सिकवा क्या गिला होगा नादान परी
सिकवा तो उन से भि नहीँ जो बार बार रुलाते हे
दिवाने हे अपुन तो आसमा की उस चाँद का
जो इस 'बाला' उमर मे ही हमे उपर बुलाते हे
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